कभी-कभी मैं अपने आध्यात्मिक लेखन या डायरी से कोई एक विचार या उद्धरण साझा करना पसंद करता हूँ — कुछ ऐसा जो भीतर गूंजता रहता है।
यह उद्धरण मुझे एक अद्भुत पुस्तक The Recognition Sutras से मिला, जिसे क्रिस्टोफ़र वालिस ने लिखा है। यह 1000 साल पुराने तांत्रिक ग्रंथ प्रत्यभिज्ञा-हृदयम् का अनुवाद और व्याख्या है, जिसे कश्मीर के महान तांत्रिक आचार्य क्षेमराज ने रचा था। यह एक गहन आत्मज्ञान से भरा ग्रंथ है।
एक पंक्ति जो मेरे हृदय में गहराई से उतर गई:
“वह स्थिति जो शिव नहीं है, शब्द में, विचार में, या वस्तु में — कहीं भी अस्तित्व में नहीं है।”
जब मैंने इसे पहली बार पढ़ा, मैं ठहर गया।
और आज भी जब पढ़ता हूँ, शांति से भर जाता हूँ।
यह पूर्ण समर्पण की घोषणा है।
सब कुछ ईश्वर है।
कुछ भी ईश्वर से बाहर नहीं है।
आप कोई गलती नहीं कर सकते। आप अलग नहीं हो सकते।
तो बस छोड़ दो। शरण में आ जाओ।
सब पहले से ही पूर्ण है।
जैसे महाराजजी कहते थे: “सब एक।”
इस सत्य में गहरी शांति है।
हाँ, हमारी जागरूकता घट-बढ़ सकती है। हम भटक सकते हैं, भूल सकते हैं।
लेकिन जो सार है — जो अस्तित्व का मूल है — वह सदा शिव है। सदा एकता है।
आप जो भी सोचें, कहें या करें — वह उसी पूर्णता का हिस्सा है।
तो बस श्वास लो। भरोसा रखो। समर्पण करो।
जय हनुमान 🙏
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